Nyaya Mein Aprama-Vichar Ke Vividh Prasthan
Arun Mishra
ISBN: 9788188643899, 8188643890
Publisher: Akshaya Prakashan
Subject(s): Philosophy and Dharmasastra
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Title: Nyaya Mein Aprama-Vichar Ke Vividh Prasthan
Author: Arun Mishra
ISBN 13: 9788188643899
ISBN 10: 8188643890
Year: 2022
Language: Hindi, Sanskrit
Pages etc.: xxii+648 pp., Bibliography, 25 cms.
Binding: Hardback
Publisher: Akshaya Prakashan
Subject(s): Philosophy and Dharmasastra
मिथिला की न्याय-परंपरा में दीक्षित अरुण मिश्र दिल्ली विश्व- विद्यालय के दर्शनशास्त्रा विभाग में व्याख्याता के पद पर, भारत सरकार के भारतीय विज्ञान, दर्शन और संस्कृति की परियोजना में
सम्पादक (शोध) के पद पर, तथा भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अन्तर्गत भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् निदेशक (शैक्षिक) के पद पर यथावधि कार्यरत रहे हैं।
न्याय के मूल ग्रन्थों पर आधारित आपकी 2 पुस्तकें और 26 प्रकरणों पर आपका प्रबन्ध देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों और शोध-संस्थानों से प्रकाशित है। न्याय के अतिरिक्त आप यदा-कदा हिन्दी भाषा और आँग्ल
भाषा में मैथिली साहित्य और मिथिला की संस्कृति के क्षेत्रा में भी लिखते रहे हैं। कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्रा में न्यायदर्शन को सभी विद्याओं का प्रदीप, सभी कर्मों का उपाय और धर्मों का आश्रय कहा है।
इस दृष्टि से यह कहा जा सकता है कि न्यायशास्त्राएक समग्र दार्शनिक तन्त्रा के रूप में भारतीय विचार-पद्धति को एक साँचा प्रदान करता है। महर्षि गौतम के न्यायसूत्रा से लेकर अद्यपर्यन्त भाष्य, अणुभाष्य,
वार्त्तिक, टीका, परिशुद्धि, वृत्ति और प्रकरण ग्रन्थों के माध्यम से न्यायशास्त्रा न केवल अपनी वैचारिक गतिशीलता को अक्षुण्ण रखा है, बल्कि विकास के स्वकीय प्रारूप को पल्लवित और पुष्पित करता रहा है।
इस पुस्तक में न्यायशास्त्रा के अन्तर्गत की वैचारिक गतिशीलता एवं विकास के स्वकीय प्रारूप को अप्रमा-विचार के विविध प्रस्थानों के विशेष संदर्भ में पहचानने और उद्घाटित