Bangladesh Ki Manav Trasadi 1971: (The Rape of Bangladesh)
Anthony Mascarenhas, Anuvadak: Shapur Navsari, Sampadak: Vinay Krishna Chaturvedi Tufail
ISBN: 9788198770288, 8198770283
Publisher: Akshaya Prakashan
Subject(s): History, Politics
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Title: Bangladesh Ki Manav Trasadi 1971: (The Rape of Bangladesh)
Author: Anthony Mascarenhas, Anuvadak: Shapur Navsari, Sampadak: Vinay Krishna Chaturvedi Tufail
ISBN 13: 9788198770288
ISBN 10: 8198770283
Year: 2025
Language: Hindi
Pages etc.: xiv+198 pp., 4 Appendices, 22 cms.
Binding: Paperback
Publisher: Akshaya Prakashan
Subject(s): History, Politics
1971 के बांग्लादेश के स्वतंत्रता आंदोलन पर लिखी गयी यह पुस्तक इस दृष्टि से अभूतपूर्व है कि प्रथमतः पश्चिमी पाकिस्तान की सेना द्वारा पूर्वी पाकिस्तान में 1970-71 में चल रहे बंगाली नरसंहार, विशेषकर हिन्दू नरसंहार तथा बंगाली स्त्रियों के साथ सामूहिक यौन अपराध को इस पुस्तक के मूल लेखक ने विश्व के सम्मुख प्रकट किया। इस लेखक का नाम एंथनी मास्करेन्हास था। एंथनी मास्करेन्हास उन चुनिंदा 8 पत्रकारों में से थे, जिन्हें मार्च 1971 के अंत में पाकिस्तान सरकार ने पूर्वी पाकिस्तान आमंत्रित किया था ताकि वे पाकिस्तान के कुकृत्यों पर आवरण डाल सकें तथा बांग्लादेश के स्वतंत्रता आंदोलन को उपद्रव बताकर तथा पाकिस्तानी सेना द्वारा उनके दमन के कार्यक्रम को देशभक्ति का चोला पहनाकर, विश्व की निगाहों में पाकिस्तान को दोषमुक्त दिखा सकें।
परंतु विनाशलीला की वीभत्सता कुछ इतनी अधिक थी कि एंथनी मास्करेन्हास का निष्पक्ष मन विचलित हो उठा। परंतु उन्हे ज्ञात था कि यदि उन्होंने सच्चाई बयान की तो पाकिस्तान सरकार का कोपभाजन अवश्य बनेंगे, अतएव उन्होंने सर्वप्रथम अपने परिवार को लंदन प्रतिस्थापित किया तथा फिर स्वयं भी लंदन चले गए तथा वहाँ बैठकर 13 जून 1971 को 'संडे टाइम्स' में एक नरसंहार (Genocide) नाम से उन्होंने एक स्तम्भ लेख लिखा जिसमें पाकिस्तान सरकार द्वारा पूर्वी पाकिस्तान में की जा रही नृशंसता का सजीव चित्रण किया। यही वह रिपोर्ट थी जिसने न केवल विश्व के सम्मुख पाकिस्तान की क्रूरता का पर्दाफाश किया, बल्कि भारत द्वारा बांग्लादेश में हस्तक्षेप करने का मार्ग भी प्रशस्त कर दिया।
यह पुस्तक 1 अक्टूबर 1971 को लिखी गयी थी, अतएव इसमें मार्च 1971 से लेकर सितंबर 1971 के अंत तक की दमनकारी नृशंसताओं का ही विवरण है। अध्याय 9 में यह स्पष्ट उल्लेख है कि पुस्तक लिखे जाने के समय तक लगभग 5 लाख बंगाली कत्ल किए जा चुके थे तथा लगभग 80 लाख घरबार छोड़कर भारत में शरण के लिए आ गए थे। युद्ध की समाप्ति बांग्लादेश की स्वतंत्रता के साथ ही 16 दिसम्बर 1971 को हुई। हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि अगले ढाई महीनों में कितने अन्य बंगाली कत्ल किये गये होंगे तथा विस्थापित होने के लिए विवश किये गये होंगे। इस पूरे प्रकरण में स्त्रियों को, विशेषकर हिन्दू स्त्रियों को अनिर्वचनीय लज्जास्पद यंत्रणा से होकर गुजरना पड़ा, जो मूल पुस्तक के शीर्षक "The Rape of Bangladesh" से ही इंगित होता है।